महावीर स्वामी [Vardhaman Mahavir] कौन थे एवं उनके जीवन पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण बातें
वर्धमान महाबीर जीवनी के बारे मे संक्षिप्त जानकारी
Vardhaman Mahavir – भगवान महावीर जैन धर्म के 24 वें तीर्थकर थे , वे एक सत्य और अहिंसा के जीती जागती मूर्ति थे | जिन्होंने पूरी दुनियां को अहिंसा का पाठ पढ़ाया |
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फ्रेंड्स ! मैं यहाँ वर्धमान महावीर के जीवनी के बारे में संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ |
- महावीर स्वामी को वर्धमान महावीर कहते है ।
- ये जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर थे ।
- जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे , जिन्होंने चार सिद्धांत दिए थे – सत्य, अहिंसा , अपरिग्रह तथा अस्तेय |
- जैन धर्म भी अन्य धर्मों की तरह भी एक पवित्र उतम धर्म है ।
- जिनमे बहुत अच्छी गुण है, जिसे अपनाकर कोई भी आदमी महान बन सकत है ।
- इन्होने मात्र 30 बर्ष की आयु में ही गृह-त्याग करके 12 बर्ष तक कठिन तपस्या किया | और अंत में ऋजुपलिका नदी के तट पर श्रमिक ग्राम में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी | ज्ञान की प्राप्ति के बाद वे जिन, निर्ग्रन्थ , अर्हत तथा कैवेलियन कहलाए |
- सभी अच्चे और सदगुण महावीर स्वामी ने बनाए है ।
- उन्होने अल्पायु में ही दुनियां के मोह-माया के जाल से अपने को मुक्त कर लिया ।
- जैन धर्म के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए तीन तत्वों का होना अति-आवश्यक है – सम्यक ज्ञान , सम्यक दर्शन , सम्यक कर्म या सम्यक आचरण |
- और जन-कल्याण के लिए एक साधू का रुप धरकर ज्ञान की प्राप्ति की खोज के लिए भटकने लगे ।
- और अन्त में पावापुरी में उसे ज्ञान की प्राप्ति हुई ।
- जिसे जैनों का तीर्थ-स्थल भी कहा जाता है ।
- इनके मृत्यु के पश्चात् इनके अनुयायी दो गुटों में बाँट गया – दिगंबर तथा श्वेताम्बर |
वर्धमान महाबीर [Vardhaman Mahavir ] जीवनी के बारे मे संक्षिप्त जानकारी
पुरा नाम | वर्धमान महावीर (महावीर स्वामी) |
जन्म स्थान | वैशाली के निकट कुण्ड ग्राम (चैत्र शुक्ल त्रयोदशी) |
जन्म | 540 BC (ई.पुर्व) |
मृत्यू | 468 BC (ई.पुर्व) (72 बर्ष की उम्र) |
मृत्यू स्थान | पावापुरी, नालंदा (कार्तिक अमावस्या) |
पिता का नाम | राजा सिद्धार्थ (इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय) |
मां का नाम | रानी त्रिशला (लिच्छिवी नरेश चेटक की बहन) |
पत्नी | यशोदा |
पुत्री का नाम | प्रियदर्शिनी |
अन्य नाम | वीर, अतिवीर, सन्मति |
वंश | इक्ष्वाकु |
प्रतीक चिह्न | शेर |
सन्यास ग्रहन | 30 बर्ष की आयू में |
शिक्षा | अहिंसा परमो धर्म: |
महावीर स्वामी का जन्म एवं संस्कार
महावीर स्वामी जैनों के अन्तिम और 24 वें तीर्थंकर है । इनका जन्म एक राजशाही क्षत्रिय परिवार में हुआ था । इनके जन्मदिन को हम महावीर जयंती के रूप में हर साल मनाते है |महावीर स्वामी का जन्म 540 ई० पुर्व में वैशाली गणराज्य के कुण्डलपुर गांव में हुआ था । इसी युग में भगवान् बुद्ध भी पैदा हुए थे | लेकिन उन दोनों के विचारों बहुत मतभेद था |
इनके पिता इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा थे। ये भगवान राम के वंशज थे । इनके माता लिच्छवि नरेश चेटक की बहन त्रिशला थी । और इनके पिता का नाम सिद्धार्थ था । इनके पिता ने अपने पुत्र महावीर के सारी सुविधाओ का इन्तजाम कर दी ।
लेकिन बालक महावीर को इन सब चीजों में मन नही लगता था ।
विवाह
इनका मन सांसारिक भोग-विलासी में नहीं लगता था | इसलिए राजा सिद्धार्थ ने इनका शादी का प्रस्ताव रखा | लेकिन पिता की आज्ञा का पालन करना पड़ा | और इस प्रकार वसंतपुर के महासामंत की पुत्री यशोदा से इनका विवाह संपन्न हुआ | यशोदा अत्यंत सुन्दर थी , जिससे एक पुत्री भी पैदा हुई जिनका नाम प्रियदर्शनी रखा गया |
महावीर स्वामी और उनका गृह त्याग
इनके घर में सुख-सुविधाओं के लिए सब कुछ उपलब्ध थे, लेकिन इनका मन इन भोग-विलासी वस्तुओं में नहीं लगता था | ऊँचे महल तथा शान ए शौकत घोड़े हांथी सब कुछ मिलकर भी उन्हें शांति नहीं दे सके | इसलिए वे शान्ति की खोज में निकल पड़े |
वास्तव में देखा जाए तो इनका जन्म दुनिया में ज्ञान बाँटने के लिए हुआ था , तो कहाँ इन सांसारिक वस्तुओं में उलझ कर रहते |
वर्धमान महावीर ने 30 बर्ष की आयु में गृह-त्याग कर दिया था, और 12 बर्ष की कठिन तपस्या के बाद ऋजुपालिका नदी के तट पर श्रम्मिक ग्राम में उन्हे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी । जिनके बाद उन्हे ‘जिन, निग्रंथ, अर्हत तथा केवलिन कहा गया ।
महावीर स्वामी और जैन धर्म की महिमा
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार समय-समय पर धर्म को बचाए रखने के लिए प्रवर्तकों का जन्म होता है| जो सत्य धर्म की राह और आत्मिक सुख के सच्चे रह बताते है , जिसे ही तीर्थंकर कहते है | और इनकी संख्या 24 है |
- जैन धर्म के संस्थापक तथा प्रथम ऋषभदेव थॆ।
- जैन धर्म के परंपरा के अनुसार कुल 24 तीर्थकर हुए ।
- जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर पार्श्वनाथ थे ।
- महावीर से पहले पार्श्वनाथ ने चार जैन सिध्दांत दिए थे- सत्य, अहिंसा,अपरिग्रह तथा अस्तेय।
- महावीर ने पाँचवाँ सिध्दांत “ब्रह्मचर्य” जोडा ।
- महावीर के मृत्यु के बाद जैन धर्म दो भागों में बंट गया- दिगंबर ( भद्रबाहु के समर्थक) तथा श्वेताम्बर (स्थुलभद्र के समर्थक) ।
- श्वेताम्बर श्वेत वस्त्र धारन करते है, जबकि दिगंबर पंथ को मानने वाले वस्त्र का परित्याग करते है ।
- जैन धर्म के ग्रंथो की रचना प्राकृत भाषा में हुई ।
- जैन धर्म को पुर्व या आगम कहा जाता है। और इनकी संख्या 12 है ।
- जैन धर्म के अनुसार ‘मोक्ष’ प्राप्ति के लिये तीन तत्वो का होना अनिवार्य है- सम्यक दर्शन , सम्यक ज्ञान , सम्यक कर्म या सम्यक आचरण ।
- जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नही है
महावीर स्वामी [Vardhaman Mahavir]और उनके विचार
भगवान् महावीर जैन धर्म के संस्थापक थे | उनके जन्म को लेकर कई विद्वानों का अलग अलग मत है | पहले तो उनके सिद्धांत को लेकर था | क्योकि इनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ| और वे जैन-धर्म के संस्थापक कैसे बने | लेकिन इसका उतर यह है की जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के सिद्धांत को इन्होने अध्यन किया | और उन्हें यह पता चला की इस धर्म में बहुत ही आडम्बर है |
लेकिन इनके जन्म को लेकर सभी इनका जन्म भारत देश को ही मानते है | विद्वानों के अनुसार वे महावीर स्वामी का कार्यकाल को ईराक के जराथ्रुस्ट, फिलिस्तीन के जिरेमिया, चीन के कन्फ्यूसियस तथा लाओत्से और युनान के पाइथोगोरस, प्लेटो और सुकरात के समकालीन मानते हैं|
इन्होने अपने उपदेश से देश-विदेश के कई राजाओं तथा महाराजाओं को भी प्रभावित किया था | मगध साम्रज्य के बिम्बिसार और चन्द्रगुप्त मौर्या जिन्होंने जैन-धर्म को अपनाया था | उन्होंने हिन्दू-धरम में फैले जाती-प्रथा जैसे कुरूतियों का भी बहुत विरोध किया था | और कहा की हर किसी को सम्मान अधिकार मिलनी चाहिए |
इन्होने हिंसा , जानवरों की बलि , जाट-पांत, भेद-भाव तथा छुआ-छूत का जमकर विरोध किया | उनके अनुसार ये सभी धर्म के बाहरी आडम्बर है | सभी मनुष्य एक ही परमात्मा की संतान है | इसलिए सभी मिलजुल कर रहना चाहिए | और एक दूसरे के काम आए | परोपकार में जो आनंद आता है वो आनंद जीवन के किसी पल में नहीं है | इसलिए समाज में फैले इन कुरूतियों जैसे- झूठ, अहिंसा, छुआ-छूत , जाति पाँति का भेद भाव मिटाकर एक दूसरे के गले मिलो |
ये सत्य , अहिंसा और त्याग एक मूर्ति थे , जिन्होंने दुनिया को भी सत्य और अहिंसा के राह पर चलने का सन्देश दिया | जिन्होंने उनके कहे गए आदर्श और उनके उत्तम आचरण को अपनाया | वे आज सुखी है |
ये डगर शुरू में तो थोड़ा कठिन होता है लेकिन बाद में आसान बन जाते है |
महावीर स्वामी के उपदेश
भगवन महावीर ने करीब 12 बर्षों तक कठिन तपस्या करके ज्ञान की प्राप्ति की | ज्ञान प्राप्ति के बाद वे निकल पड़े विश्व भ्रमण पर और घूम-घूम कर उपदेश देने लगे और धरम का प्रचार करने लगे | उनके द्वारा दिए गए उपदेश पंचशील का सिद्धांत कहलाए| वे इस प्रकार है:
- सत्य
- अहिंसा
- अपरिग्रह
- अस्तेय
- ब्रह्मचर्य
सत्य :- हमें सत्य का साथ कभी भी और किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ना चाहिए | कोई भी मुसीबत की घडी आ जाए तो भी हमें सत्य का साथ देना चाहिए | क्योकि सत्य परेशां हो सकता है लेकिन पराजित नहीं | इसी बात को ध्यान में रखकर हमें चलना चाहिए |
अहिंसा :- हमें अपने जिंदगी में हिंसा का रास्ता अपनाना चाहिए, चाहे वह मानव जाति हो या पशु | कभी भी किसी के साथ अहिंसक नहीं होना चाहिए | क्योकि सभी एक जीव है और सभी को समान अधिकार प्राप्त है |
अपरिग्रह :- मनुष्य एक नश्वर है | हमारा यह शरीर नश्वर है | इसलिए हमें किसी भी चीज पर ज्यादा मोह या लालच नहीं रखना चाहिए | यही हमारे लिए दुःख का कारन बनता है |
अस्तेय :- चोरी करना महापाप कहा जाता है | आप कोई भी काम कर लो लेकिन जिंदगी में कभी भी किसी की कोई भी वास्तु को चुराना नहीं चाहिए | क्योकि यह बहुत बड़ा अधर्म है |
ब्रह्मचर्य:– ब्रह्मचर्य का पालन करना बहुत ही कठिन है | लेकिन जो इसका पालन करते हुए आगे बढ़ता है उसे ही मोक्ष की प्राप्ति होती है |
निर्वाण
भगवान महावीर को 72 बर्ष की आयु 527 ई.पूर्व को बिहार के पावापुरी जिसे राजगीर भी कहते है कार्तिक मास की अमावश्या की तिथि को मोक्ष की प्राप्ति हुई | यहाँ पर एक जल मंदिर है , इसी मंदिर में इनको मोक्ष की प्राप्ति हुई |
जय जिनेन्द्र यह जैन धर्म का आदरणीय सूचक शब्द है जिनका अर्थ होता है की की भगवान् को प्रणाम करो और जिनेन्द्र हो जाओ |
Some interesting facts about Mahavir
- महावीर स्वामी का जन्म 6ठी शताब्दी मे हुआ था ।
- इनके माता-पिता का नाम सिध्दार्थ तथा त्रिशला थ।
- इनका परिवार शाही क्षत्रिय परिवार से थे ।
- इनके माता-पिता पार्श्वानाथ के भक्त थे ।
- महावीर का जन्म 540 ई०पुर्व में वेदेही गनराज्य के कुण्ड ग्राम में हुआ था ।
- इनका बचपन का नाम वर्धमान था, जिसका अर्थ होता है बढना।
- इनको वर्धमान , वीरा, अतिवीरा तथा सन्मति के नाम से भी जानते है ।
- राजा सिध्दार्थ ने अपने पुत्र के लिए संसार के सारे विलासी सुख-सुविधाओ का इंतजाम कर दिया था । लेकिन इन विलासी वस्तुओ तथा सुख-सुविधाऒं ने महावीर को आकर्षित नही कर सका ।
- मात्र 30 बर्ष की आयु में महावीर ने गृह-त्याग करके सन्यासी बन गए। और ज्ञान की खोज में भटकने लगे ।
- इनका विवाह बहुत ही अल्पायु में एक सुन्दर स्त्री यशोदा से हुआ ।जिनसे उनहे एक पुत्री का जन्म भी हुआ। जिनका नाम प्रियादर्शनी है ।
- जो इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा थे । जो अयोध्या के भगवान राम के वंशज है ।
- उन्होने 12 बर्षों तक कठिन मेहनत किया और मोक्ष प्राप्ति के रास्ते ढुंढ निकाला ।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद 30 बर्षों तक उसके घुम-घुम कर जन कल्याण के लिए उपदेश देते रहे ।
- भगवान महावीर ने 72 बर्ष की आयु में मौत को गले लगा लिया ।
- इनकी मृत्यु 468 ई०पुर्व पावापुरी ,मगध में हुआ था। जो जैनों के तीर्थस्थल बन गया है।
- ज्ञान प्राप्त करने कॆ बाद वे दिगम्बर साधू बन गए। और आजीवन निर्वस्त्र रहते थे । और जैन-धर्म का प्रचार प्रसार करते रहे ।
- उन्होने ज्ञान प्राप्ति के पांच रास्ते बताएं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (शुध्द्ता) तथा अपरिग्रह (अनाशक्ति) । इन पांच नियमों का पालन करके आप अध्यात्मिक पा सकते है ।
- भगवान महावीर के जन्म दिन को जैन धर्म के लोग महावीर जयन्ती के रुप में मनाते है ।
- इतिहासकारों के अनुसार भगवान महावीर और भगवन बुध्द एक-दुसरे के समकालीन थे ।
- गृह-त्याग करने के बाद वे अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान मग्न होते थे ।
- इनहोने अपने कठोर तपस्या के द्वारा ऋजुपालिका नदी के किनारे एक साला वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी प्राणी समान हैं इसलिए हमें एक-दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद करते है । यही महावीर का ‘जीयो और जीने दो’ का सिद्धांत है।
- पावापुरी में जल मंदिर में ही भगवान महवीर को ज्ञान मिला था ।
- महावीर स्वामी द्वारा बनाए गए, ये पांच नियम जो हर ब्रह्मचर्य तथा गृहस्थ को अवश्य पालन करना चाहिए।
- आत्मा अमर है।
- भगवान संसार के हर वस्तुऒं में है ।
- कोई देवता नही है ।
- मनुष्य मोक्ष की प्राप्ति अपने आत्म-संयम और आत्म साधना के द्वारा प्राप्त करता है ।
- अहिंसा- जैनियों के अनुसार हरैक व्यक्ति में पवित्रता और गरिमा होती है, जिसका हमें पालन करना चाहिए । और एक-दुसरे का सम्मान करना चाहिए।
- सत्य:- हमेशा सत्य वचन ही बोलना चाहिए।
- अस्तेय :- किसी का भी धन को नही चुराना चाहिए । किसी का दिया हुआ भी नही लेना चाहिए ।
- ब्रह्मचर्य :- हमे ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सेक्स के प्रति संयम होना चाहिए । और भिक्षुओं के लिए कामुक सुख, और गृहस्थों के लिए किसी के साथी के प्रति विश्वासशीलता दिखाना चाहिए।
- अपरिग्रह:- किसी से भी ज्यादा लगाव नही रखना चाहिए।
इतने वर्षों बीत जाने के बाद भी आज हम भगवान महावीर का नाम स्मरण उसी श्रद्धा और भक्ति से लिया जाता है। इसका मूल कारण यह है कि महावीर ने इस जगत को न केवल मुक्ति का संदेश दिया, अपितु मुक्ति की सरल और सच्ची राह भी बताई। भगवान महावीर ने आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु अहिंसा धर्म का उपदेश दिया।